नंदी-भक्ति दो, ज्ञान लो
शिव का एक रूप पशुपतिनाथ का है। वह पशुओं की रक्षा करते हैं। प्राचीन समय में पशु ही मानव जीवन का प्रमुख सहारा थे। शिव के सामने बैठा नंदी उनके पशु-प्रेम का प्रतीक है। नंदी बैल ही क्यों है? बैल को भोला माना जाता है, लेकिन काम बहुत करता है, उसमें चातुर्य भी होता है, लेकिन लोमड़ी वाली चतुराई से वह किसी का नुक़सान नहीं करता। शिव भी भोले हैं, बहुत कर्मठ और जटिल जीवन है उनका। अपनी चतुराई से किसी की हानि नहीं करते। बैल और शिव के स्वभाव में समानता है।
स्कंदपुराण के अनुसार, वृषो हि भगवान धर्म: अर्थात् जब शिव के पास कोई वाहन नहीं था और वह स्वयं ही आकाशमार्ग से विचरते थे, तब भगवान धर्म यानी यम की बड़ी इच्छा हुई कि शिव के वाहन बन जाएं। इसके लिए उन्होंने शिव की आराधना की। शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें बैल रूप में अपना वाहन बना लिया। बैल को अज्ञानी भी माना जाता है।
‘ज्ञानेन हीना: पशुभि समाना:’
यानी जो ज्ञान से हीन है, वह पशु के समान है। शिव के साथ से नंदी ज्ञानी हो गया। शिव ज्ञानहीनों के देव हैं, उन्हें ज्ञान देते हैं। नंदी के प्रतीक से यह भी स्पष्ट होता है।
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