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भगवान शिव का अर्धनारीश्वर अवतार

              भगवान शिव का अर्धनारीश्वर अवतार 

 

 

भगवान शिव आदि व अनंत है। इनकी पूजा करने से तीनों लोकों का सुख प्राप्त होता है। भगवान शंकर ने जगत कल्याण के लिए कई अवतार लिए। भगवान शिव के इन अवतारों में कई संदेश भी छिपे हैं । उन्हीं में से कुछ अवतारों की कथा तथा उनमें छुपे संदेश की जानकारी संक्षिप्त में नीचे दी जा रही है |


अर्धनारीश्वर अवतार: स्त्री-पुरुष की समानता का पर्याय

भगवान शंकर के अर्धनारीश्वर अवतार में हम देखते हैं कि भगवान शंकर का आधा शरीर स्त्री का तथा आधा शरीर पुरुष का है। यह अवतार महिला व पुरुष दोनों की समानता का संदेश देता है। समाज, परिवार व सृष्टि के संचालन में पुरुष की भूमिका जितनी महत्वपूर्ण है उतना ही स्त्री की भी है। स्त्री तथा पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं। एक-दूसरे के बिना इनका जीवन निरर्थक है। अर्धनारीश्वर लेकर भगवान ने यह संदेश दिया है कि समाज तथा परिवार में महिलाओं को भी पुरुषों के समान ही आदर व प्रतिष्ठा मिले। उनके साथ किसी प्रकार का भेद-भाव न किया जाए।

क्यों हुआ अर्धनारीश्वर अवतार?

शिवपुराण के अनुसार सृष्टि में प्रजा की वृद्धि न होने पर ब्रह्माजी ने तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। ब्रह्मा की तपस्या से परमात्मा शिव संतुष्ट हो अर्धनारीश्वर का रूप धारण कर उनके समीप गए और जगत कल्याण के लिए  शिव ने अपने शरीर में स्थित देवी शिवा/शक्ति के अंश को पृथक कर दिया। ब्रह्मा ने उस परम शक्ति की स्तुति की और कहा- माता। मैं मैथुनी सृष्टि उत्पन्न कर अपनी प्रजा की वृद्धि करना चाहता हूं अत: आप मुझे नारीकुल की सृष्टि करने की शक्ति प्रदान करें।

ब्रह्माजी की प्रार्थना स्वीकार कर देवी शिवा ने उन्हें स्त्री-सर्ग-शक्ति प्रदान की और अपनी ललाट के मध्य से अपने ही समान कांति वाली एक शक्ति की सृष्टिï की जिसने दक्ष के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया। शक्ति का यह अवतार आंशिक कहा गया है। शक्ति पुन: शिव के शरीर में प्रविष्ट हो गई। उसी समय से मैथुनी सृष्टि का प्रारंभ हुआ। तभी से बराबर प्रजा की वृद्धि होने लगी।
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