श्रावण मास भगवान भोले शंकर का प्रिय महीना
श्रावण मास भगवान शंकर को विशेष प्रिय है। अत: इस मास में आशुतोष भगवान शंकर की पूजा का विशेष महत्व है। सोमवार शंकर का प्रिय दिन है। इसलिए श्रावण सोमवार का और भी विशेष महत्व है।
गौरतलब हो कि भगवान शंकर का यह व्रत सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इस मास में लघुरूद्र महारूद्ध अथवा अतिरूद्र पाठ करके प्रत्येक सोमवार को शिवजी का व्रत किया जाता है। प्रात: काल गंगा या किसी पवित्र नदी सरोवर या घर पर ही विधि पूर्वक स्नान करने का विधान है। इसके बाद शिव मंदिर जाकर या घर में पार्थिव मूर्ति बना कर यथा विधि से रूद्राभिषेक करना अत्यंत ही फलदायी है। इस व्रत में श्रावण महात्म्य और विष्णु पुराण कथा सुनने का विशेष महत्व है।
विदित हो कि कैलाश के उत्तर में निषध पर्वत के शिखर पर स्वयं प्रभा नामक एक विशाल पुरी थी जिसमें धन वाहन नामक एक गनविराज रहते थे। समयानुसार उन्हे आठ पुत्र और अंत में एक कन्या उत्पन्न हुई जिसका नाम गंधर्व सेना था। वह अत्यन्त रूपवती थी और उसे अपने रूप का बहुत अभिमान था। वह कहा करती थी कि संसार में कोई गंधर्व या देवती मेरे रूप के करोड़वे अंश के समान भी नहीं है। एक दिन एक आकाशचरीगण नायक ने उसकी बात सुनी तो उसे शाप दे दिया 'तुम रूप के अभिमान' में गंधर्वो और देवताओं का अपमान करती हो अत: तुम्हारे शरीर में केाढ़ हो जायेगा। शाप सुन कर कन्या भयभीत हो गयी और दया की भीख मांगने लगी। उसकी बिनती सुन कर गणनायक को दया आ गयी और उन्होंने कहा हिमालय के वन में गोश्रृंग नाम के श्रेष्ठ मुनी रहते है। वे तुम्हारा उपकार करेगे। ऐसा कह कर गणनायक चला गया। गंधर्व सेना व छोड़ कर अपने पिता के पास आई और अपने कुष्ट होने के कारण तथा उससे मुक्ति का उपाय बतायी। माता पिता उसे तत्क्षण लेकर हिमालय पर्वत पर गए और गोश्रृंग का दर्शन करके स्तुति करने लगे। मुनि के पूछने पर उन्होंने कहा कि मेरे बेटी को कोढ़ हो गया है कृपया इसकी शांति का उपाय बताएं।
मुनि ने कहा कि समुद्र के समीप भगवान सोमनाथ विराजमान है। वहां जाकर सोमवार व्रत द्वारा भगवान शंकर की आराधना करो। ऐसा करने से पुत्री का रोग दूर हो जायेगा। मुनि के वचन सुन कर धनवाहन अपनी पुत्री के साथ प्रभास क्षेत्र में जाकर सोमनाथ के दर्शन किए और पूरे विधि विधान के साथ सोमवार व्रज करते हुए भगवान शंकर की आराधना किए उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शंकर भगवान ने उस कन्या के रोगों को दूर किया और उन्हे अपनी भक्ति भी दान में दिया। आज भी लोग शिव जी को प्रसन्न करने के लिए इस व्रत को पूरी निष्ठा एवं भक्ति के साथ करते है और शिव को प्राप्त करते है।
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